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श्री पिडंवाडा तीर्थ राजस्थान में स्थित है । अतीत के पन्नों से जानकारी मिलती है कि यह तीर्थ बहुत ही प्राचिन है । इस तीर्थ का प्राचिन नाम "पिण्डवाटक" था ;इस मंदिर का जिर्णोद्वार विक्रम संवत १४६५ में धरणाशाह के पिता श्री कुँवरपाल और महाराजा कुमारपाल के सहायक लिम्बा ने करवाया था ।मंदिर में लगे प्राचिन शिलालेख से जानकारी मिलती है ।
पावन पिंडवाड़ा नगरी ,धन्य पिंडवाड़ा नगरी,जहां श्रमण भगवान महावीर ने भी विचरण किया ,ऐसी लोकोक्ति प्रसिद्ध है । जहाँ संप्रति महाराजा ने भव्य जिनालय का निर्माण किया । यही नहीं अजारी , नादिया ,बाह्मणवाडा,दीयाणा तथा नाणा में भगवान महावीर के तीर्थ जवलंत साक्षी -भूत मोजूद है। काल के कँवल में कई शासन परिवर्तित हुए परन्तु इतिहास के साक्षीभूत जिन मंदिर आज भी अडिग खड़े है ।पिण्डवाडा तथा अजारी का जीर्णोद्धार देवविमान तुल्य जगप्रसिद्ध राणकपुर के भव्य मंन्दिर के निर्माण कर्ता 'धरणा शाह ' पोरवाड़ ने १४०० सदि में करवाया था । तत् पश्चात राणकपुर जिनालय की निर्माण किया । इसका प्रमाण पिण्डवाडा मंदिरजी में प्राचिन शिलालेख साक्षी रूप है ।
अब गत सौ वर्ष के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यह अटल सत्य है कि पिण्वाङा नगरी पुन्य का पिण्ड ही है । इसी नगरी में शासन शिरोमणी अजोङ संयमी, अनेक जीवों को संसार के दावानल से मुक्त करा कर संयम वृत्त प्रदान कर मोक्ष नगर के पथिक बनाये ऐसे परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्र्वरजी महाराज साहेब जेसे तप व संयम के देदीप्यमान रत्न ने अवतार लिया ।
वि.स.१९७८ में सकलागम रहस्यवेदी प. पू . आचार्य श्रीमद् विजय दानसूरीश्वरजी म.सा.तथा प. पू मुनिराज श्री प्रेमविजयजी म सा (श्री प्रेमसुरीश्वरजी )प पू मुनिराज रामविजयजी (श्री रामचंद्र सूरीश्वरजी ) म सॉ का चातुर्मास हुआ । उस समय से धर्म वृद्धि का प्रारम्भ हुआ । उसके बाद कई वर्षों तक पूज्य मूनिभंगवंतो के चातुर्मास नहीं होने के कारण धर्म भावना में प्रगति नहीं हो पाई ,युवा वर्ग ने संघ में धर्म भावना बढ़े उस हेतु संवत १९९७ से लगातर मुनि भंगवंतो केा चातुर्मास कराने के प्रयत्न किए । संवत १९९९ में परम पूज्य आचार्य म सा कविकुल किरिट श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी म सा के पट्टधर प पू उपाध्यायजी श्री भुवनविजयजी ने (आ .श्री .भुवनतिलकसूरीश्वरजी)चातुर्मास करने की विनती स्वीकार की । चातुर्मास प्रभावना पूर्ण तथा आराधना युक्त हुआ । संघ में मतभेद दूर कर एकता स्थापित कर देव -दृव्यादि सात क्षेत्रों की व्यवस्था मार्गदर्शन देकर सुव्यवस्थित की ,श्री संघ की पेढी स्थापित की । बावन जिनालय के जीर्णोद्धार की प्रेरणा देकर उत्साहित किया । संवत २००१ में प पू आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसुरीश्वरजी म सा का चातुर्मास हुआ उस समय धर्म भावना में वदृि हुई ,आपकी कृपा दृष्टि अनुपम आलम्बंन तथा हितकारी प्रेरणा से दिन प्रतिदिन पिण्डवाडा श्री संघ की प्रगति होती गई । धार्मिक भावनारूपी पौधे को धर्म जल का सिचंन मिलता रहे इस दृष्टि से सुविहित मुनिराजो के चातुर्मास का आयोजन प्रतिवर्ष होता रहा , इससे जीर्णोंद्वार का कार्य भी संपन्न हो गया । ।। विक्रम संवत २०१६ पिंडवाडा नगर का एतिहासिक प्रतिष्ठा महोत्सव ।।
जिन शासन के महान् ज्योतिधर्र सिद्धांत महोदधि, कर्म साहित्य निष्णात सुविशाल गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्र्वरजी महाराजा को जन्म देने का श्रेय: इसी धरती को प्राप्त हुआ था। विक्रम संवत २०१६ में पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य भगवंत के साथ पू. आचार्य श्री यशोदेवसूरिजी म.सा; पूज्य पन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी तथा पु.पन्यासप्रवर श्री भानुविजयजी म.सा. आदि विशाल साधु -साध्वीजी भगवंतो की शुभ निश्रा में चैत्र वदि ११ से वैशाख सुद ७ तक भव्यतिभव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ था। चैत्र वदि ११ के शुभ दिन कुंभ स्थापना, दीपक स्थापना आदि द्वारा महोत्सव का शुभारंभ हुआ। पिंडवाडा संघ का उत्साह अमाप था । विशालकाय गगन चुंबी बावन जिनालय मंदिर में मूलनायक श्री महावीरस्वामी (संप्रति काल के) आदि जिनबिबों की भव्यतिभव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव का प्रारम्भ हो चुका था । समस्त नगर को इन्द्रपुरी की भांति सजा दिया गया था । प्रातः काल की मधुरवेला से ही शहनाई के नाद व मंगल प्रभातियों से वातावरण गूंज उठा था । कार्यक्रम की भव्यता हेतु आत्मानंद चौक के मध्य में ४० फुट ऊँचा शासन ध्वज लहरा रहा था । श्री संप्रति सभा मंडप व श्री कुमारपाल उधान की रचना की गयी थी । चैत्र वदि १४ के दिन पूज्य पन्यास श्री कांतिविजयजी म., पू.प.श्री मुक्तिविजयजी म.सा.,पू.प.श्री हिमांशुविजयजी म.सा आदि २६ महात्माओं का भी आगमन हो चुका था । चैत्र वदि अमावस्या से ही श्री शांतिनाथ प्रभु के च्यवन कल्याणक महोत्सव का प्रारंभ हुआ । विधिकारक थे श्रीयुत् कांतिलालभाई तो प्रभु भक्ति में रमझट हेतु श्री हीराभाई, गजाननभाई तथा श्री जैन धर्म आराधक मंडल आदि उपस्थित थे । वैशाख सुदी १ के दिन परमात्मा का जन्म कल्याणक का भव्य महोत्सव खूब उत्साह- उल्लास के साथ संसंपन्न हुआ । वैशाख सुदी ३ दिन परमात्मा के दीक्षा कल्याणक का भव्य आयोजन रकिया गया था । इस महोत्सव में पूज्यपाद रगच्छाधिपति आचार्य भगवंत सह ११९ साधु भगवंतों की उपस्थिति थी । वैशाख सुदी द्वितीय ३ की मध्य रात्रि में परमात्मा की अजंन विधी पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्र्वरजी महाराजा ने संपन्न करवाई । वैशाख सुद ६ के शुभ दिन शुभ मुहूर्त मैं १०.४५ बजे अत्यंत ही उत्साह व उमंग के साथ वीर विक्रम महाप्रसाद के मूलनायक श्री महावीर स्वामी, श्री गोडीजी पाश्र्वर्नाथ आदि जिन बिंबों की प्रतिष्ठा विधि सम्पन्न हुई । उसी समय स्टेशन पर मेहता खुबचंदजी अचलदासजी तथा शाह रतनचंदजी हीराचंदजी द्वारा निर्मित नूतन मंदिर की भी प्रतिष्ठा संपन्न हुई । परम पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय प्रेमसुरीश्वरजी म. सा. की प्रबल प्रेरणा से , उनकी तारक निश्रा में अनेक मुनिराजो ने कर्म साहित्य का सर्जन का कार्य शुरू किया था । पूज्यश्री ने संघ समक्ष अपना मंत्वय रखा ,त्योहि संघ ने स्वीकार किया , तदनुसार भारतीय प्राच्य तत्व प्रकाशन समिति की स्थापना की गई । प्रकाशन संस्था द्वारा लगभग १६ महाकाय ग्रंथों को मुद्रित करवाये गये । दो लाख श्लोक प्रमाण कर्मसाहित्य का नूतन सर्जन किया , आग्मादि अन्य ग्रंथ भी पिण्डवाडा के मुद्रणालय में मुद्रित किए गये । प्राचिन तीर्थ 'अजारी ' बावन जिनालय के जिर्णोद्वार का उतरदायित्व पिण्डवाडा श्री संघ ने सम्भालाकर नौ वर्ष में जिर्णोद्वार करवाकर विक्रम संवत् २०२७ में परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्र्वरजी म.सा.; परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय यशोदेवसूरीश्र्वरजी म.सा. परम पूज्य पंन्यासजी भंदरकरविजयजी गणवीर ; प.पू.पं. हेमन्तविजयजी म. सा. (पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् हीरसूरीश्र्वरजी म.सा.) आदि अनेक मुनिवरों की छत्र छाया में प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ । उसके दूसरे दिन आपकी तारक निश्रा में पिण्डवाडा में स्वर्गस्थ परम पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय प्रेमसुरीश्र्वरजी म.सा. की प्रतिमाजी की गुरूमंदिर में प्रतिष्ठा हुई । परम पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म . सा . की तारक निश्रा में संवत् २०२५ तथा २०३१ में दो शिविर भी आयोजित किए गए , जिसमें अनेक नगरों के विद्यार्थीयों ने समग्यज्ञान की प्राप्ति की । दो बार उपधान तप की भी आराधना बहुत अच्छी हुई । आराधको की संख्या काफ़ी अच्छी रही ,जिसमें कई आराधको ने आराधना कर इस भव को सफल बनाने की प्रेरणा ली । परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसुरीश्वरजी साक्षात संयम मूर्ति थे जिनकी अमीद्रष्टी से पिडंवाडा श्री संघ में से अनेक भाईयों और बहेनों ने दीक्षा ली ।पूज्य श्री के कालधर्म होने के बाद भी यहाँ अनेक दिक्षाएं हुई । ।। विक्रम संवत् २०३४ पिंडवाडा में भव्य अंजन शलाका प्रतिष्ठा व दीक्षा महोत्सव ।।
पिंडवाडा नगर में शा रीखबचंदजी मेहता परिवार ने स्वद्रव्य का सद् व्यय कर बावन जिनालय मंदिर के समीप देव विमान तुल्य श्री शंखेश्र्वर पार्श्वनाथ प्रभु का मंदिर बनवाया । मेहता परिवार की भावना थी कि मंदिर तैयार हो चुका हैं अतः अंजन शलाका व प्रतिष्ठा महोत्सव भी शीघ्र संपन्न हो जाय तो अच्छा है । इस प्रतिष्ठा महोत्सव में निश्रा प्रदान करने हेतु वर्धमान तप की १००+१०० ओली के आराधक परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय राजतिलकसूरीश्र्वरजी महाराज साहेब को भी विनंति की गई । पूज्यश्री ने पिंडवाडा संघ की विनंति का हार्दिक स्वीकार किया । योगानुयोग निडर वक्ता शासन प्रभावक परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय मुक्तिचन्द्रसूरीश्र्वरजी महाराजा भी अपने शिष्य परिवार के साथ रतलाम से विहार कर मरूभूमि की ओर पधार रहे थे । नवपद आराधक समाज द्वारा आयोजित चैत्र मास की शाश्वती ओली दादापार्श्वनाथ तीर्थ बेडा में निश्चित हुई थी । अध्र्यात्मयोगी पूज्यपाद पन्यासजी भगवंत की शारीरिक प्रतिकूलता के कारण बेडा पधारने की शक्यता नहीं होने से पू आचार्य देव श्रीमद् विजय मुक्तिचन्द्रसूरीश्र्वरजी म . सा.की तारक निश्रा में नवपद ओली का आयोजन बहुत ही उल्लासपूर्वक संपन्न हुआ । तत्पक्षात् पिंडवाडा संघ की आग्रह भरी विनंति की स्वीकार कर पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय मुक्तिचन्द्रसूरीश्र्वरजी म . सा .भी पिंडवाडा पधारे। इतना ही नहीं , अध्यात्मप्रेमी पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय कलापूर्णसूरीश्रवरजी म.सा.भी अन्य कार्यो को गौण कर पूज्यपाद पंन्यासजी भगवंत के दर्शन वंदन हेतु कच्छ से विहार कर पिंडवाडा पधारे । विशाल संख्या में साधु -साध्वी वृंद के आगमन से पिंडवाडा संघ का उत्साह ख़ूब ख़ूब बढ़ गया । नगर में चारों ओर आनंद व उत्साह नज़र आ रहा था । संवत २०३४ चैत्र वदी ११ के शुभ दिन अध्यात्मयोगी पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य , शासन प्रभावक पू.आ . श्रीमद् विजय मुक्तिचंद्रसूरीश्र्वरजी म.सा. , वर्धमान तपोनिधि पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय राजतिलकसूरीश्र्वरजी म.सा., अध्यात्ममूर्ति पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय कलापूर्णसूरीश्रवरजी म.सा. आदि ५० से अधिक साधुवंदृ तथा सुविशाल साध्वीवंदृ आदि की शुभ निश्रा में अजंन शलाका प्रतिष्ठा महोत्सव का मंगल प्रारंभ हुआ । ११ दिन तक तीनों समय नवकारसी, प्रभुजी के भव्यतिभव्य वरघोडे , मुमुक्षु हर्षदकुमार के वर्षीदान का भव्य वरघोड़ा एंव भागवती दीक्षा आदि से महोत्सव में चार चाँद लगे हुए थे । विशाल भोजन व प्रवचन मंडप ,चलती- फिरती रचनाएँ , इलेक्ट्रिक लाइट व डेकोरेशन , ध्वजा, पताकाएँ , तोरण व द्वारों से संमूर्ण नगर सजाया गया था । विक्रम संवत् वैशाख सुदी -५ के शुभ दिन रात्री की मंगल वेला में पूज्य पंन्यासजी भंगवत के वरद हस्तों से ही मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की अजंन शलाका विधि संपन्न हुई .... दूसरे दिन वैशाख सूदी ६ विक्रम संवत् २०३४ पूज्यो की तारक निश्रा में ख़ूब हर्षोल्लास के साथ प्रतिष्ठा विधि संपन्न हुई ।